रंग बिरंगी पतंगें हमने भी
उड़ाईं थीं आसमान में,
विचरती थीं हवा के भरोसे
पर डोरी तो थी हमारे हाथ में,
कभी काटी, कभी कटवाई
यादें सारी मन में समाई ।
कभी खो खो, कभी गिल्ली डंडा
खेलों के लिए लिया बहुतों से पंगा,
कभी क्रिकेट कभी सितोलिया,
बचपन के पलों को जी भर के जिया ।
मगर ज्यों ज्यों कर्त्तव्य पथ पर बढ़ते गए
कई आवरणों में बंधते गए
रूप नए नए गढ़ते गए,
और स्वयं हम पीछे छूटते गए ।
अब फुर्सत की इस वेला में,
दब गए थे जो अपने शौक
उन्हें फिर से जिलाना है,
वक़्त की गर्द में ढक गए जो व्यक्तित्व
हमें उन्हें फिर से निखारना है ।
अलकेश बत्रा (Happy2Age member)
Nimmi
November 27, 2024 at 6:08 amPenned it so beautifully.
आपने मेरे दिल की बात कह दी।
शुक्रिया ।
Nimmi
November 27, 2024 at 6:11 amYou have penned it so beautifully.
लगता है जैसे आपने मेरे दिल की बात कह दी हो।